Saturday, April 12, 2008
सवाल दर सवाल
सवालीराम का यह मशहूर किरदार एकलव्य के विज्ञान कार्यक्रम होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण से निकला है।
जिंदा रहना सवाल का
संसार में हमारा प्रवेश सवालों से होता है। आंख, कान या त्वचा आदि ज्ञानेन्द्रियों में चाहे जो भी सक्रिय हो, धरती पर उतरते ही हम कुतूहल से भर उठते हैं। किसी ने कहा है- शिशु साक्षात सवाल है। बच्चे के सामने सबकुछ सवाल है। जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं हमारे सवाल मरने लगते हैं। या ठीक-ठीक कहें तो मार दिये जाते हैं। हमारे आस पास तमाम संस्थाएं बनी हुई हैं जो जिज्ञासा को भोथरा कर देती हैं। घर, परिवार, स्कूल, जातीय घरौंदे इसमें बहुत अहम रोल अदा करते हैं। लेकिन मनुष्य की जिज्ञासा दुर्दमनीय है। हजारों हजार साल की अपनी यात्रा में वह इन सबसे लड़ता भिड़ता आगे बढ़ता रहा है चाहे उसे सवाल और खोज मे लिए जहर का प्याला मिला हो या फिर फांसी का तख्ता। सत्य को खोजने और समझने उसके नए रूपाकारों को समझने और अभिव्यक्त करने की उसकी यात्रा अहर्निश जारी के लिए ही इस ब्लॉग की परिकल्पना की उम्मीद है इसके जरिए हम इसे जिंदा रख पायेंगे। आमीन
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